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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग - १८/११ श्री जिनेन्द्र भगवान की भक्ति - आराधना व जैन शास्त्रों के स्वाध्याय-चिन्तनमनन व ध्यान में अपना समय बिताने लगे । अतः उनकी गिनती एक धार्मिक पुरुष के रूप में भी होने लगी। सभी उनके सदाचार श्रावकव्रत-विधान की तथा दान, पूजादि कार्यों की प्रशंसा करने लगे। वे अहिंसाणुव्रत, अचौर्याणुव्रत, स्वदार-सन्तोषव्रत आदि व्रतों को धारण करके सदाचार पूर्ण जीवन व्यतीत करते थे। इससे राज दरबार में भी उनकी बहुत प्रशंसा होने लगी। मगधापति भी उन्हें बहुत सम्मान देते थे । सुदर्शन का कपिल नाम का एक ब्राह्मण मित्र था और वह राजा गजवाहन का राज पुरोहित था । उसकी पत्नी का नाम कपिला था । वह सुदर्शन के रूप पर मोहित थी । एक दिन कपिला ने कपिल के घर से बाहर जाने के समय षड़यंत्र रचकर अपनी दासी को सुदर्शन के पास भेजा और कहलवाया कि तुम्हारे अभिन्न मित्र कपिल ने विशेष रूप से घर मिलने के लिये बुलाया है। दासी के कहे अनुसार सुदर्शन कपिल के घर पहुँचा, तब कपिला ने कहा कि वह बाहर गया है, परन्तु मेरी बात सुनो ! मैं तुम्हारे रूप - गुण पर मोहित हूँ, इसलिये मेरा मनोरथ पूर्ण करो ! यदि तुम मेरी प्रार्थना स्वीकार नहीं करोगे तो मैं तुम्हें अभी इसी समय मरवा दूँगी । ऐसा कहकर वह मूर्खा सुदशन से आलिंगनादि करने लगी। ऐसा करते देख सेठ सुदर्शन उससे कहने लगे कि क्या तुम्हें पता नहीं है कि मैं नपुंसक हूँ ? यह सुनकर कपिला उससे विरक्त हुई और उसे अपने घर से जाने दिया । एक दिन महाराज सेठ सुदर्शन के साथ बगीचे में घूम रहे थे। महाराज गजवाहन की रानी भी साथ थी। बाद में रानी ने सेठ सुदर्शन की पूछ-परख की। तब दासी ने बताया कि महारानीजी वह हमारी नगरी के प्रधान सेठ हैं, उनका नाम सुदर्शन है । रानी ने कहा कि यह तो बहुत आनन्द की बात है कि सुदर्शन राज्यरत्न है, परन्तु उसका सौन्दर्य अपूर्व है । मैंने आज तक ऐसा सुन्दर पुरुष नहीं देखा है । उसको देखते ही मेरा मन आकर्षित हो गया है। मुझे भ्रम है कि स्वर्ग का देव भी इतना सुन्दर होगा क्या ? अच्छा, तू
SR No.032267
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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