SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-17/79 ने कहा- “यदि तुम मेरे काव्य का अर्थ कर दोगे तो मैं सबके सामने तुम्हारा शिष्य बन जाऊँगा और यदि तुम अर्थ नहीं बता सके तो अपने समस्त अभिमानी शिष्यों और दोनों भाईयों के साथ आकर मेरे गुरु का शिष्य बनना होगा। गौतम ने यह बात स्वीकार कर ली। . इन्द्र ने गौतम से काव्यरूप में पूछा - 'द्रव्य कितने हैं? तत्त्व कितने हैं? अस्तिकाय कितने हैं? धर्म के कितने भेद हैं? श्रुतज्ञान के अंग कितने हैं? ऐसे गूढ़ प्रश्नों से भरे काव्य को सुनकर गौतम ब्राह्मण थोड़ा दुःखी हुआ और मन में विचार करने लगा कि इस काव्य का क्या अर्थ कहूँ? फिर गौतम ने विचारकर वृद्ध ब्राह्मण से कहा कि चलो, तुम्हारे गुरु से ही बात करते हैं। इस प्रकार कहकर गौतम अपने पाँच सौ शिष्यों सहित उस वृद्ध ब्राह्मण वेशधारी इन्द्र के साथ चलने लगे। मार्ग में गौतम ने विचार किया कि जब मैं इस वृद्ध के प्रश्न का उत्तर नहीं दे सका, तब इसके गुरु तो महान् विद्वान होंगे, उनको किसप्रकार उत्तर दूँगा ? .. कुछ ही समय में गौतम ब्राह्मण अपने 500 शिष्यों के साथ भगवान महावीर स्वामी के समवसरण में आ पहुँचे। सरकाश इन्द्र की खुशी का पार नहीं था, इन्द्र अपने अन्दर ही अन्दर आनन्दित होरहा था कि तभी जिसने अपनी शोभा द्वारा तीनों लोकों मैं आश्चर्य उत्पन्न किया है- ऐसे मानस्तम्भ को - देखकर गौतम ब्राह्मण ने अपना सब अभिमान त्याग दिया। उन्होंने मन में विचार किया कि जिस गुरु की इस पृथ्वी पर आश्चर्य उत्पन्न करने वाली इतनी विभूति है, क्या वे मुझसे पराजित हो सकते हैं? नहीं, कदापि नहीं। तत्पश्चात् आगे जाकर वीर प्रभु के दर्शन करके गौतम ब्राह्मण ने अनेक प्रकार ADORE S m om woria
SR No.032266
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy