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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-17/76 आकर रोने लगी, दूसरी काम-वासना से पीड़ित हो मुनि के शरीर से लिपट गई और तीसरी ने धुआँ करके मुनिराज को बहुत कष्ट दिया। इसके पश्चात् कामज्वर से पीड़ित वे तीनों स्त्रियाँ अनेक प्रकार के कटाक्ष करती हुईं मुनिराज के सामने नग्न होकर नृत्य करने लगीं और पत्थर, लकड़ी, मुक्का, लात, हाथ आदि से उन्हें मारने लगीं तथा मुनिराज को बांध लिया, तथापि मुनिराज चलायमान नहीं हुए। सत्य ही है - क्या प्रलयकाल की वायु से महान मेरु पर्वत चलायमान होता है? उस समय मुनिराज अपने हृदय में बारह अनुप्रेक्षाओं का चिन्तवन करने लगे और उन्होंने अत्यन्त कष्ट प्रदायक स्त्रियों के उपसर्ग को कुछ भी नहीं गिना। संसाररूपी समुद्र में डूबे हुए प्राणियों को पार उतारने के लिये अनुप्रेक्षा ही नाव समान है।
प्रातःकाल होने पर इन उपद्रवों को व्यर्थ समझकर तथा मार्ग में आतेजाते लोगों के डर से तीनों स्त्रियाँ भाग गईं। उन्होंने मुनिराज पर जो घोर उपसर्ग किया वह अत्यन्त दुःखदायी था। इस पापकर्म के उदय से तीनों स्त्रियों को कोढ़ हो गया। सभी लोग उनकी निन्दा करने लगे। तीनों स्त्रियाँ कोढ़ के रोग से हमेशा महा दुःखी रहती थीं। आयु समाप्त होने पर रौद्रध्यान पूर्वक मरकर तीनों स्त्रियाँ पाँचवे नरक में उत्पन्न हुईं और असहनीय नरक के दुःखों को भोगने लगीं। नरक आयु पूर्ण होने पर तीनों ने एक समान ही कर्म बंध किया होने से तीनों जीव क्रमशः बिल्ली, सूअरी, कुत्ती और मुर्गी आदि योनियों में उत्पन्न हुईं, वहाँ भी वे बहुत जीवों की हिंसा करतीं, आपस में लड़ती-झगड़ती, घर-घर फिरतीं और मार खाती रहतीं। ___ आयु पूर्ण होने पर तीनों मुर्गियाँ बहुत ही दुःखी होकर मरीं और धर्मस्थानों से सुशोभित ऐसे अवन्ति देश के पास में नीच लोगों की बस्ती में इन कन्याओं के रूप में पैदा हुईं। इनके गर्भ में आते ही धनादि नष्ट हो गया, जन्म होते ही माता मर गई। तीनों में एक कानी, एक लंगड़ी और एक काली थी। वे मुनियों पर घोर उपसर्ग के पाप से हमेशा दुःखी रहा करती थीं। इनके शरीर, अंग-उपांग बेडोल थे। इनके शरीर की दुर्गन्ध से नगर में जाते ही सम्पूर्ण नगर दुर्गन्धयुक्त हो जाता था। तीनों कन्यायें भूख-प्यास से तीव्र पीड़ित थीं। अत्यन्त दुराचार करने में हमेशा तत्पर ऐसी ये तीनों कन्यायें