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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग -17/61 ऐसा कहकर कुमार मदारी को राजा के पास ले गया और राजा ने कुमार के कहे अनुसार मदारी को अभयदान दे दिया। फिर मदारी ने एक साधारण सर्प निकाला। नागदत्त कुमार ने उससे क्रीड़ा कर उसे तुरन्त हरा दिया। कुमार कहता है कि तेरे पास कोई इससे भी जहरीला दूसरा नाग हो तो उसे भी अजमा ले। मदारी कहता है कि मेरे पास दूसरा ऐसा भयंकर नाग है कि उसकी फुकार से ही लोगों को चक्कर आने लगेंगे। . कुमार कहता है कि तेरे पास कैसा भी भयंकर जहरीला नाग हो उसे निकाल, मेरे पास ऐसी जड़ी-बूटी है कि भयंकर नाग का जहर भी नहीं चढ़ सकता; अतः तू निर्भय होकर अपने नाग को बाहर निकाल।। मदारी ने भयंकर नाग को बाहर निकाला। वहाँ उसकी फुकार से ही लोगों को चक्कर आने लगे। जब नागदत्त उसके साथ क्रीड़ा करने गया, तब नाग ने उसे तत्काल काट (डस) लिया और कुमार को तुरन्त जहर चढ़ गया, जिससे लोगों में हाहाकार मच गया और मंत्र-तंत्रवादियों को बुलाया गया; परन्तु कोई भी जहर उतारने में सफल नहीं हुआ। राजा घबराकर मदारी से कहता है कि भाई ! इस सांप के जहर से बचने का कोई उपाय तुम्हारे पास ही हो तो मेरे पुत्र को बचालो। __मदारी कहता है कि यह बच तो जायेगा, लेकिन आपके पास नहीं रहेगा, होश में आते ही मोक्षप्रदायिनी जिनदीक्षा धारण कर लेगा। राजा ने कहा - भले मोक्षप्रदायिनी जिनदीक्षा धारण कर ले, पर कुमार बच जाये; मैं इसे जिनदीक्षा लेने में बाधक नहीं बनूँगा, अब तुम इसका जहर शीघ्र उतार दो। मदारी मंत्र पढ़कर जहर उतार देता है और कुमार जागृत होकर मदारी से कहता है कि मैंने इतना जहरीला सर्प आजतक नहीं देखा, तुम इसे कहाँ से लाये हो और तुमने इसका जहर उतारने का मंत्र कहाँ से सीखा है, मुझे सब बातें विस्तार से बताओ। मैं भी ऐसे जहरीले सर्प का जहर उतारने वाला मंत्र सीखना चाहूँगा। ___तब मदारी अपना देव का रूप धारण करके स्वर्ग में दोनों मित्रों के बीच हुई प्रतिज्ञा का स्मरण दिलाता है।
SR No.032266
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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