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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-16/79 वृद्ध - कैसी सौम्याकृति है पण्डितजी की। भला ऐसे सज्जन देव पुरुष किसी का बुरा भी सोच सकेंगे ?
एक नागरिक - सुनते हैं इन्होंने शिवपिंडी उखड़वा दी है।
वृद्ध - किसी दुष्ट का षड़यंत्र है भैया ! षड़यत्र ! इनके हाथ से किसी का अहित जो जाये यह सर्वथा असंभव है।
दूसरा नागरिक - अन्याय है, घोर अन्याय ! जो व्यक्ति आज तक किसी से कटु कठोर वचन भी नहीं बोला, वह ऐसे निंद्यकार्य नहीं कर सकता।
वृद्ध - राजा अत्याचारी है। जो बिना सोचे समझे क्षीर-नीरवत् न्याय न कर अनर्गल निर्णय दे देता है। धिक्कार है ऐसे राजा को। प्रजावत्सल कहलाकर जो निरपराधों के प्राण ले लेता है।
दूसरा नागरिक - कलियुग आ गया है दादा ! कलियुग ! “साँचे कौं फाँसी लगे, झूठे लड्डू खाँय।"
(पण्डित टोडरमलजी निर्भय खड़े हुए हैं। महावत हाथी को पण्डितजी पर चढ़ने के लिये प्रेरित करता है। वह हाथी पर बार-बार अंकुश छेदता है, परन्तु हाथी टस से मस नहीं होता, इस अन्याय को देख कर हाथी के नेत्र भी सजल हो जाते हैं, असकी आँखों से आँसू बहने लगते हैं। पुनः पुनः अंकुश के छेदने से हाथी के शरीर से रक्त बहने लगता है। वह चिंघाड़ के साथ पैर उठाता है, पर पुनः पुनः सहम कर पीछे हट जाता है। चिंघाड़ से टोडरमलजी का ध्यान भंग हो जाता है। वे हाथी की दयनीय दशा देखकर
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