SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१४/८२ ... त्याग का उपाय करना। जहाँ शुद्धोपयोग न हो सके वहाँ अशुभोपयोग को छोड़कर शुभ में ही प्रवर्तन करना, क्योंकि शुभोपयोग की अपेक्षा अशुभोपयोग में अशुद्धता की अधिकता है। धर्म वकील - प्वाइंट नोट किया जाये जज साहब ! क्या मेरे काबिल दोस्त भी कुछ पूछना चाहेंगे? पुण्य वकील- यस मीलॉर्ड! पण्डितजी साहब ! तो क्या शुभ भाव करने वाला कोई मोक्ष नहीं जा सकता तथा शुभ भाव और पुण्य से मोक्ष मान लिया जाये तो क्या परेशानी है ? पण्डितजी - परेशानी अरे महापरेशानी खड़ी हो जायेगी; जो भी इन शुभ भावों में मोक्षमार्ग मानकर संतुष्ट हो जायेगा, उसे कभी भी सच्चा मोक्षमार्ग नहीं मिल सकेगा। वह अनन्तकाल तक संसार में ही भटकता रहेगा। पुण्य वकील- तो क्या मोक्षमार्ग में शुभ भाव होते ही नहीं हैं ? पण्डितजी- अरे वकील साहब मोक्षमार्ग में शुभ भाव नहीं होते; ऐसी बात नहीं हैं वहाँ पर भूमिकानुसार शुभ विकल्प आये बिना रहते नहीं हैं। हम गृहस्थों की क्या बात कहें मुनियों को भी २८ मूलगुण पालन करने रूप शुभ भाव आये बिना रहता नहीं है; परन्तु वे उसे उपादेय नहीं मानते हैं हेय ही मानते हैं और निरन्तर शुभ भाव से निकलकर शुद्धभाव में जाने का ही पुरुषार्थ करते रहतेहैं। पुण्य वकील- बस मैं इतना ही पूछना चाहता था। धर्म वकील - ठीक है पण्डितजी आप पधारें। जज साहब ! अब निर्णय में जरा-सी भी देर नही लगनी चाहिये, क्योंकि अब अदालत में सारी बात शीशे की तरह साफ हो चुकी है। पुण्य वकील- नहीं जज साहब ! अभी बात साबित नहीं हुई है, क्योंकि मेरे
SR No.032263
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy