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________________ जैन धर्म की कहानियाँ भाग - १४/२३ महोत्सव आदि द्वारा जैनधर्म की महाप्रभावना करते हैं - यह है समकिती का प्रभावना गुण | सिद्धकुमार : महाराज ! अभी तो भरतभूमि में धर्मकाल चल रहा है, वासुपूज्य आदि तीर्थंकर भी विचरण कर रहे हैं, इसलिए अभी वहाँ ऐसे प्रभावना आदि गुण के धारक अनेक संत धर्मात्मा नजर में आ रहे हैं, परन्तु जब कलयुग आयेगा और साक्षात् तीर्थंकर भगवान का विरह होगा, तब भरतक्षेत्र का क्या होगा ? इन्द्र : भाई ! तब अनेक वीतरागी धर्मात्माओं का जन्म होगा और वे भरतक्षेत्र में तीर्थंकर जैसा महान काम करेंगे। सिद्धकुमार ऐसे कौन-कौन से संत होंगे ? : इन्द्र : परमपूज्य महावीर भगवान के बाद परमपूज्य गौतमस्वामी होंगे, फिर परमपूज्य धरसेनाचार्य आदि होंगे। उनके बाद परमपूज्य कुन्दकुन्दाचार्य आदि होंगे। वे इस भरतक्षेत्र में तीर्थंकर के समान कार्य करेंगे। उनके पश्चात् परमपूज्य नेमिचंद्र सिद्धांतचक्रवर्ती आदि होंगे, उनके प्रताप से जगह-जगह जिनशासन की प्रभावना होगी, फिर परमपूज्य अमृतचंद्राचार्य, जयसेनाचार्य और पद्मप्रभमलधारिदेव आदि महान संत उत्पन्न होंगे। (हर्षनाद) मुक्तिकुमार : अरे, अरे! यह घंटानाद कहाँ हो रहा है ? इन्द्र : देवो! आज से नंदीश्वरद्वीप में अष्टाह्निका महोत्सव का प्रारम्भ हो रहा है। चलो, हम भी नंदीश्वर द्वीप चलें ।
SR No.032263
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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