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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१४/१२ पर मुझे अपूर्व सम्यग्दर्शन की प्राप्ति हुई। भाई! जिसका मुझे वर्षों से इंतजार था, आज उस अपूर्ववस्तु की प्राप्ति से मुझे अपार खुशी हो रही है।
छोटा भाई : अहो भाईसाहब! सम्यग्दर्शन की प्राप्ति से आप जिनेश्वर देव के लघुनंदन हो गये। आपका मनुष्य जन्म सफल हो' गया। आपके चरणों में मेरा वंदन हो। अहो! धन्य है वह देश! धन्य है वह पवित्रभूमि! जहाँ आप आत्मा के स्वरूप का विचार कर सम्यग्दर्शनरूपी लक्ष्मी से भेंट कर मोक्षमार्ग की ओर अग्रसर हुए।
____ भाईसाहब! अभी तक मैंने अपने आत्मस्वरूप को नहीं पहिचाना, परन्तु आज आपके आत्मकल्याण की चर्चा सुनकर मुझे बहुत खुशी हुई है। अब आप अपने समान ही मेरी आत्मा का भी उद्धार कीजिए। भाईसाहब! मुनिराज ने अपने उपदेश में क्या कहा था?