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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/७० तो जगत के भव्यजीव आत्मज्ञान करेंगे और मोक्ष को साधेगे....तो मैं तेरी माता क्यों बाकी रहूँ? मैं भी अवश्य मोक्षमार्ग में आऊँगी। बेटा तू भले ही सारे जगत का नाथ है; परन्तु मेरा तो पुत्र ही है ! तुझे आशीर्वाद देने का मुझे अधिकार है। ___पुत्र - वाह, माता ! तुम्हारा स्नेह अपार है....माता के रूप में तुम पूज्य हो....तुम्हारा वात्सल्य जगत में अजोड़ है।
माता ! मेरी मोक्षसाधिका धन्य-धन्य है तुझको... तव स्नेह भरी मीठी आशिष प्यारी लागे है मुझको... माता ! दर्शन तेरा रे....जगत को आनन्ददायक है... बेटा ! तेरी अद्भुत महिमा सम्यक् हीरे जैसी है... तेरा दर्शन करके भविजन मोह के बन्धन तोड़े हैं... बेटा ! दर्शन तेरा रे...जगत को मंगलकारक है...
माता
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पुत्र -
माता ! तेरी मीठी वाणी से तो फूल हि फूल बरसते हैं... तेरे हिरदय हेतु फव्वारे झरझर-झरझर झरते हैं... माता ! दर्शन तेरा रे...जगत को आनन्ददायक है... तेरी वाणी सुनकर भविजन मोक्षमार्ग में दौड़ें... चेतन रस को पीकर वे तो राजपाट सब छोड़ें... बेटा जन्म तुम्हारा रे...जगत को मंगलकारक है...
माता -