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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/३० उसका अनन्तवाँ भाग भी विषयांध मोही जीव को विषयों में से प्राप्त होता है ? नहीं, विषयरहित वीतरागभाव से ही जीव को शान्ति प्राप्त होती है। पूर्वभव : त्रिपृष्ठ मरकर सातवें नरक में और विजय बलभद्र मोक्ष में
(दो भाई- एक मोक्ष में, दूसरा नरक में) त्रिपृष्ठ कुमार ने (अपने चरित्र नायक महावीर के जीव ने) विजय बलभद्रसहित त्रिखण्ड के राज्य का दीर्घकाल तक उपभोग किया। योग्य समय पर उनके पिता प्रजापति ने दीक्षा ग्रहण की और केवलज्ञान प्रगट करके निर्वाण प्राप्त किया। दूसरी ओर इष्ट एवं मनोज्ञ (वास्तव में अनिष्ट एवं बुरे) विषयों में ही जिसका चित्त लीन है- ऐसा वह त्रिपृष्ठकुमार निदान बन्ध के कारण विषयों के रौद्रध्यान सहित निद्रावस्था में ही मृत्यु को प्राप्त हुआ....
और जिसका असंख्यात वर्षों का घोरातिघोर दु:ख चिन्तन में भी नहीं आ सकता - ऐसे सातवें नरक में जा गिरा। अरे रे ! एक-एक क्षण तीव्र विषयासक्ति के पापफल में वह जीव असंख्यात वर्ष के महा भयानक दुःखों को प्राप्त हुआ। ऐसे घोर दुःख फलवाले विषयसुखों को सुख कौन कहेगा? उन नरक दु:खों का वर्णन भी जिज्ञासुको संसार से भयभीत कर देता है। अरे ! ऐसे दुःख ? उनसे बचना हो तो अज्ञान को छोड़कर आत्मज्ञान करना चाहिये... विषयों के प्रति वैराग्य करना चाहिये । यह महावीर का जीवपूर्वकाल में अज्ञानदशा से भवभ्रमण करता हुआ त्रिपृष्ठ वासुदेव जैसा महान अवतार प्राप्त करके भी विषय-कषायों में लीनतावश सातवें नरक में गया। इससे ज्ञात होता है कि अरे जीव ! जिन्हें मूर्ख अज्ञानीजन सुख मान रहे हैं - उन्हें तू नरक समान दुःख दाता जान....और उनसे विमुख होकर चैतन्य के अतीन्द्रिय सुख को सच्चा सुख जानकर उसकी अनुभूति में संलग्न हो। विषय-कषाय सांसारिक सुखों का मण भी दुःख है और चैतन्यानुभूति के कण में भी महान सुख है। : कहाँ अर्धचक्रवर्ती के त्रिखण्ड के राजवैभव की अनुकूलता....और कहाँ यह सातवें नरक की प्रतिकूलता ? अपने भाई त्रिपृष्ठ की मृत्यु होने पर विजय बलभद्र छह मास तक उद्वेग में रहे; पश्चात् वैराग्य प्राप्त करके जिनदीक्षा धारण की और रत्नत्रयरूपी अमोघ-अहिंसक शस्त्र द्वारा समस्त कर्मों का क्षय करके मोक्षपद प्राप्त किया। अरे ! सदा साथ रहने वाले दो भाई....उनमें से एक ने तोवीतराग चारित्र द्वारा मोक्षसुख प्राप्त किया और दूसरे ने विषय-कषायवश