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________________ जैन धर्म की कहानियाँ भाग-८/८५ साथ खेल कर मैं भी एकबार देखू कि आप किस चतुराई से खेलते हैं।" CID SECOS YAS ( यह कह कर रानी ने एक दासी को बुलाकर चौपड़ लाने की आज्ञा दी । पुरोहितजी प्रथम तो कुछ हड़बड़ाये, लेकिन रानी की आज्ञा वे टाल नहीं सके । दासी ने चौपड़ लाकर रानी के सामने रख दी। आखिर उन्हें खेलना ही पड़ा, लेकिन रानी ने पहली ही बाजी में पुरोहितजी की अंगूठी जीत ली । - रानी के द्वारा पहले ही समझाये अनुसार एक दासी उस अंगूठी को लेकर पुरोहितजी के घर गई और थोड़ी देर पश्चात् कुछ निराशसी होकर लौट आई । इधर खेल शुरु ही था । दासी को निराश देख कर रानी समझ गई कि अभी काम, नहीं बना । अब की बार उसने पुरोहितजी का जनेऊ जीत लिया और किसी बहाने से उस दासी को बुला कर चुपके से जनेऊ (यज्ञोपवीत) देकर भेज दिया । दासी के वापिस आने तक रानी पुरोहितजी को खेल में लगाये रही । इतने में दासी आ गई । उसे प्रसन्न देख कर रानी ने अपना मनोरथ पूर्ण हुआ समझा । उसने उसी समय खेल बन्द कर दिया और पुलिखानी को वापिस जाने की आज्ञा दी ।
SR No.032257
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2013
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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