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अचौर्य व्रत ___जो अनन्त गुणों के सागर हैं. और अनन्त गुणों के प्रदाता हैंऐसे श्री अनन्त-जिन को अनन्त गुणों की प्रप्ति के लिए नमस्कार करके, अहिंसा व्रत रक्षा के हेतुरूप अचौर्य व्रत कहा जाता है।
हे भव्य ! बिना दिये अन्य के धन-धान्य वगैरह का ग्रहण करना चोरी है, उसका त्याग अचौर्य है । बिना दिये हुए अन्य का धन लेने की वृत्ति तू दूर से ही छोड़ दे, क्योंकि साँप को पकड़ना तो अच्छा है, परन्तु दूसरों का धन ले लेना ठीक नहीं है । भीख माँग कर पेट भरना अच्छा है, परन्तु अन्य का द्रव्य चुरा कर घी-शक्कर खाना अच्छा । नहीं है ।
चोरी का पाप करने वाले जीव का मन स्वस्थ नहीं रह सकता। अरे, चोर को शान्ति कहाँ से होगी ? उसका चित्त हमेशा शंकाशील रहता है । चैतन्य की शान्ति के अपार निधान अपनी आत्मा में झूलने वाले धर्मी को चोरी का तीव्र कषाय भाव कैसा ?
तीन लोक में उत्तम लक्ष्मी पुण्यवानों के घर में नीति मार्ग से ही आती है । चक्रवर्तित्व आदि विभूति कोई चोरी करके किसी को नहीं मिलती। धन के लोभ से सदोष वस्तुओं (अभक्ष्य वगैरह) का व्यापार करना उचित नहीं । धन का नाश होने से संसारी जीवों को मरण जैसा दुःख होता है। धन उसे प्राण जैसा प्यारा है, इसलिए जिसने दूसरों का धन चोरी किया, उसने उसके प्राणों की ही चोरी की, इससे उसे भाव-हिंसा हुई । इसलिए हे बुद्धिमान ! हिंसा पाप से बचने के लिए. तू चोरी छोड़ दे । ।
अरे, ऐसे वे कौन बुद्धिमान हैं कि जो थोड़े धन के लिए चोरी का महापाप करके नरकादि दुर्गति में भ्रमें ? यदि कुटुम्बी जनों के