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________________ जैन धर्म की कहानियाँ भाग-८/८० कर प्रतिदिन राजकार्य करता था और लोगों को यह कहा करता था कि मेरे सत्य के प्रभाव से मेरा सिंहासन आकाश में ठहरा हुआ है, वही सिंहासन वसु की असत्यता से टूट पड़ा है और जमीन में धंस गया । उसके साथ ही वसु भी पृथ्वी में जा धंसा । अर्थात् वसु काल के सुपर्द हुआ और मर कर वह सातवें नरक में गया । ___ सच है, जिसका हृदय दुष्ट और पापी होता है, उसकी बुद्धि नष्ट हो जाती है और अन्त में उसे कुगति में जाना पड़ता है । इसलिए जो अच्छे पुरुष हैं और पाप से बचना चाहते हैं, उन्हें प्राणों का संकट आने पर भी कभी झूठ नहीं बोलना चाहिये । पर्वत की दुष्टता देख कर प्रजा के लोगों ने उसे राज्य के बाहर निकाल दिया और नारद का बहुत आदर-सत्कार किया । इस प्रसंग से नारद की जिनधर्म पर श्रद्धा और भी दृढ़ हो गई। अन्त में संसार से उदासीन होकर उसने जिनदीक्षा ग्रहण कर ली। मुनि होकर उसने अनेक जीवों को कल्याण के मार्ग में लगाया और तपस्या द्वारा पवित्र रत्नत्रय की आराधना कर आयु के अन्त में सर्वार्थसिद्धि गया । इस प्रकार असत्य मार्ग पर चलने वालों का अहित होता है और वे कुगति को प्राप्त होते हैं । मिथ्या मार्ग का उपदेश अनेक जीवों का अहित करने वाला . होने से महान असत्य है। दुष्ट जीवों ने असत्य वचनों से कुशास्त्र रच कर लोगों को हिंसक और धर्म के विरुद्ध कर दिया है । कुशास्त्र रचने वाले जीवों ने असत्य मार्ग की पुष्टि के द्वारा स्व-पर का अहित किया है । . असत्य वचन के प्रभाव से ही जिन-शासन में भी अनेक मतमतान्तर उत्पन्न हुए हैं ।
SR No.032257
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2013
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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