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जैन धर्म की कहानियाँ भाग-८/५४
ऐसा कहकर उस बालक को वही छोड़कर वह चली गई। इस बालक का नाम था वज्रकुमार, क्योंकि उसके हाथ पर वज्र का चिह्न था।
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बस, उसी समय दिवाकर नाम के एक विद्याधर राजा तीर्थयात्रा करने निकले थे। जब मुनि महाराज को वन्दन करके जाने लगे तो उन्होंने गुफ़ा के बाहर ही एक अत्यन्त तेजस्वी बालक को पड़ा हुआ देखा। विद्याधर राजा की रानी ने उस बालक को एकदम उठा लिया और बड़े प्यार से उसे वे अपने साथ ले गये। उस वज्रकुमार बालक का पुत्र जैसा पालन-पोषण विद्याधर राजा के यहाँ होने लगा। भाग्यवान जीवों को कोई न कोई निमित्त अवश्य ही मिल जाता है।
वज्रकुमार के युवा होने पर वनवेगा नामक अत्यन्त सुन्दर विद्याधर कन्या के साथ उसकी शादी हुई। अपने बल पर उसने अनेक राजाओं को जीत लिया ।