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________________ 8) प्रभावना अंग में प्रसिद्ध मुनिश्री वज्रकुमार की कहानी जैसे होवे वैसे भाई, दूर हटा जग का अज्ञान। कर प्रकाश, करदे विनाश तम, फैलादे शुचि सच्चा ज्ञान।। तन-मन-धन सर्वस्व भले ही, तेरा इसमें लग जावे। 'वज्रकुमार' मुनीन्द्र सदृश तू, तब 'प्रभावना' कर पावे॥ अहिछत्रपुर राज्य में सोमदत्त नामक एक मन्त्री था । उसकी गर्भवती पत्नि को आम खाने की इच्छा हुई । उस समय आम पकने का मौसम नहीं था, फिर भी मन्त्री ने वन में जाकर आम ढूँढा तो एक पेड़ पर एक सुन्दर आम झूलता हुआ दिखाई दिया, उसे बड़ा आश्चर्य हुआ । उस पेड़ के नीचे एक वीतरागी मुनिराज ध्यानस्थ बैठे थे । शायद, उन्हीं के प्रभाव से उस पेड़ पर आम पक गया था । मन्त्री ने भक्ति पूर्वक नमस्कार करके मुनि महाराज के सामने विनय पूर्वक हाथ जोड़ कर निवेदन किया । तब मुनि महाराज ने उस मन्त्री को निकटभव्य जान कर धर्म का स्वरूप समझाया । उसी समय अत्यन्त वैराग्यपूर्ण उपदेश सुनकर मन्त्री दीक्षा लेकर मुनि हो गये और वन में जाकर आत्म साधना करने लगे । उस सोमदत्त मन्त्री की पत्नि ने यज्ञदत्त नामक पुत्र को जन्म दिया। वह पुत्र को लेकर मुनिराज (सोमदत्त) के पास आई, परन्तु संसार से विरक्त मुनि महाराज ने उससे मिलने से इंकार कर दिया । इससे क्रोधित होकर वह स्त्री बोली- “अगर साधु होना था तो मुझसे शादी क्यों की? मेरा जीवन क्यों बिगाड़ा? अब इस पुत्र का पालन-पोषण कौन करेगा?" .
SR No.032257
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2013
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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