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जैन धर्म की कहानियाँ भाग-८/३७
कर बुद्धिमान सेठ ने चौकीदारों को रोक कर कहा- "अरे तुम लोग यह क्या कर रहे हो? यह कोई चोर नहीं है, यह तो धर्मात्मा है । नीलम मणि लाने के लिए तो मैंने उसे कहा था, तुम गलती से इसे चोर समझ कर हैरान कर रहे हो ।"
सेठ की बात सुन कर सब लोग चुपचाप वापिस चले गये । इस तरह एक मूर्ख मनुष्य की भूल के कारण होने वाली धर्म की बदनामी बच गयी । इसे ही उपगूहन अंग कहते हैं । जैसे एक मेंढक के दूषित होने से सम्पूर्ण समुद्र गन्दा नहीं होता, उसी प्रकार कोई असमर्थ निर्बल मनुष्य के द्वारा छोटी-सी भूल हो जाने पर पवित्र जिनधर्म मलिन नहीं हो जाता ।
जिस तरह माता इच्छा करती है कि मेरा पुत्र उत्तम गुणवान, हो, अत: वह पुत्र में कोई छोटा-बड़ा दोष देख कर उसे प्रसिद्ध नहीं करती, परन्तु ऐसा उपाय करती है कि उसके गुण की वृद्धि हो। उसी प्रकार धर्मात्मा भी धर्म में कोई अपवाद हो- ऐसा कार्य नहीं करते, परन्तु धर्म की प्रभावना हो, वही करते हैं ।
यदि कभी किसी गुणवान धर्मात्मा में कदाचित् दोष आ जाय तो उसे गौण करके उसके गुणों को मुख्य करते हैं और एकान्त में