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________________ जैन धर्म की कहानियाँ भाग-८/३२ ने धर्मवृद्धि का आशीर्वाद कहा है, इसलिए इनकी भी परीक्षा करनी चाहिये- ऐसा राजा के मन में विचार आया । अगले दिन. मथुरा नगरी के उद्यान में अकस्मात् साक्षात् ब्रह्मा प्रगट हुए । इस सृष्टि के कर्त्ता ब्रह्माजी साक्षात् आये हैं...... वे कह रहे हैं- "मैं इस सृष्टि का कर्त्ता हूँ और दर्शन देने के लिए आया हूँ ।" यह बात नगर जनों में फैल गई। नगर जनों की टोलियाँ उनके दर्शन के लिए उमड़ पड़ीं और उन्हें गाँव में लाने की चर्चा हुई । 1 मूढ़ लोगों का तो क्या कहना ? बहु-भाग लोग इन ब्रह्माजी के . दर्शन करने आये। प्रसिद्ध भव्यसेन मुनि भी कुतुहल वश उस जगह आये। यदि कोई नहीं गये थे तो वे सिर्फ सुरत मुनि और सिर्फ रेवतीरानी । जैसे ही राजा ने साक्षात् ब्रह्मा की बात की, वैसे ही महारानी रेवती ने नि:शंकपने कहा- "महाराज ! ये कोई ब्रह्मा हो ही नहीं सकते, किसी मायाचारी ने इन्द्रजाल खड़ा किया है, क्योंकि कोई ब्रह्मा या कोई इस सृष्टि का कर्ता है ही नहीं । साक्षात् ब्रह्मा तो अपना ज्ञानस्वरूप आत्मा है अथवा भरतक्षेत्र में भगवान ऋषभदेव ने मोक्षमार्ग की रचना की, इसलिए उन्हें आदि ब्रह्मा कहते हैं । इनके अतिरिक्त दूसरा कोई ब्रह्मा है ही नहीं, कि जिसे मैं वन्दन करूँ ।" दूसरे दिन मथुरा नगरी में एक अन्य दरवाजे से नागशय्या पर विराजमान विष्णु भगवान प्रगट हुए, जिन्होंने अनेक अलंकार पहने हुए थे और उनके चारों हाथों में शस्त्र थे । लोगों में फिर हलचल मच गई । लोग बिना कोई विचार किये पुन: उस तरफ भागे। वे कहने लगे - " अहा ! मथुरा नगरी का महाभाग्य खुल गया है, कल साक्षात् ब्रह्मा ने दर्शन दिये और आज विष्णु भगवान पधारे हैं ।" राजा को ऐसा लगा कि आज तो रानी अवश्य जायेगी, इसलिए उन्होंने स्वयं रानी से बात की, परन्तु रेवती जिसका नाम था, . जो वीतराग देव के शरण में ही समर्पित थी, उसका मन जरा भी डिगा नहीं ।
SR No.032257
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2013
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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