________________ जन्म वीर संवत् 2451 पौष सुदी पूनम जैतपुर (मोरबी) देहविलय 8 दिसम्बर 1987 पौष वदी 3, सोनगढ़ सत्समागम वीर संवत् 2471 (पुज्य गुरुदेव श्री से) राजकोट ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा वीर संवत् 2473 फागण सुदी 1 (उम्र 23 वर्ष) ब्र. हरिलाल अमृतलाल मेहता पूज्य गुरुदेव श्री कानजीस्वामी के अंतेवासी शिष्य, शूरवीर साधक, सिद्धहस्त, आध्यात्मिक, साहित्यकार ब्रह्मचारी हरिलाल जैन की 19 वर्ष में ही उत्कृष्ट लेखन प्रतिभा को देखकर वे सोनगढ़ से निकलने वाले आध्यात्मिक मासिक आत्मधर्म (गुजराती व हिन्दी) के सम्पादक बना दिये गये, जिसे उन्होंने 32 वर्ष तक अविरत संभाला। पूज्य स्वामीजी स्वयं अनेक बार उनकी प्रंशसा मुक्त कण्ठ से इसप्रकार करते थे - "मैं जो भाव कहता हूँ, उसे बराबर ग्रहण करके लिखते हैं, हिन्दुस्तान में दीपक लेकर ढूँढने जावें तो भी ऐसा लिखने वाला नहीं मिलेगा....." आपने अपने जीवन में करीब 150 पुस्तकों का लेखन/सम्पादन किया है। आपने बच्चों के लिए जैन बालपोथी के जो दो भाग लिखे हैं,वे लाखों की संख्या में प्रकाशित हो चुके हैं। अपने समग्र जीवन की अनुपम कृति चौबीस तीर्थकर भगवन्तों का महापुराण - इसे आपने 80 पुराणों एवं 60 ग्रन्थों का आधार लेकर बनाया है। आपकी रचनाओं में प्रमुखतःआत्म-प्रसिद्धि, भगवती आराधना, आत्म वैभव, नय प्रज्ञापन, वीतराग-विज्ञान (छहढ़ाला प्रवचन, भाग 1 से 6), सम्यगदर्शन (भाग 1 से 8), जैनधर्म की कहानीयाँ (भाग 1 से 6), अध्यात्म-संदेश, भक्तामर स्तोत्र प्रवचन, अनुभव-प्रकाश प्रवचन, ज्ञानस्वभाव, ज्ञेयस्वभाव, श्रावकधर्मप्रकाश, मुक्ति का मार्ग, अकलंक-निकलंक (नाटक), मंगल तीर्थयात्रा, भगवान ऋषभदेव, भगवान पार्श्वनाथ, भगवान हनुमान, दर्शनकथा महासती अंजना आदि हैं। 2500 वें निवार्ण महोत्सव के अवसर पर किये कार्यों के उपलक्ष्य में,जैन बालपोथी एवं आत्मधर्म सम्पादन इत्यादि कार्यों पर अनेक बार आपको स्वर्ण-चन्द्रिकाओं द्वारा सम्मानित किया गया है। * जीवन के अन्तिम समय में आत्म-स्वरूप का घोलन करते हुए समाधि पूर्वक "मैं ज्ञायक हूँ....मैं ज्ञायक हूँ" की धुन बोलते हुए इस भव्यात्मा का देह विलय हुआ - यह उनकी अन्तिम और सर्वाधिक महत्वपूर्ण विशेषता थी। मुद्रण व्यवस्था : जैन कम्प्यूटर्स, जयपुर फोन : 0141-700751 फैक्स : 0141-519265