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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/६६
इसी धर्म में निकलंक वीर ने, प्राण तजे बिन बोला। मेरा जैनधर्म अनमोला, मेरा जैनधर्म अनमोला ॥ २ ॥ इसी धर्म में अकलंकदेव ने, एकांती झकझोरा । मेरा जैनधर्म अनमोला, मेरा जैनधर्म अनमोला ॥ ३ ॥ (पर्दे के पीछे रथयात्रा की तैयारी का सूचक बैण्ड बज रहा है ।)
मंत्री : (पीछे से आकर ) महाराज ! रथयात्रा की सारी तैयारी हो चुकी है। भगवान का रथ भी तैयार है। आप सब पधारिये ।
'सर धर्म वृद्धि हो
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(सब पर्दे में जाते हैं।, बैंड-बाजे की आवाज चालू है। केवल संघश्री मुंह नीचे किये बैठे हैं। पर्दा गिरता है ।)
(डम........डम.....डम..... इस प्रकार बाजा बज रहा है। "जय हो ! विजय हो!” ऐसा जयानाद होता है। भव्ययात्रा आती है। अकलंक महाराज के हाथ में झंडा है । राजा, जिनकुमार, संघपति आदि साथ