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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/४६ पहला दृश्य:
(उज्जैन नगरी की राजसभा भरी हुई है। चार दरबारी बैठे हैं।)
छड़ीदार : सोने की छड़ी, चांदी की मशाल, मोतियों की माल, नेक नामदार उज्जैन अधिपति महाराजा पधार रहे हैं।
(राजा प्रवेश करते हैं। दरबारी खड़े होकर उनका सम्मान करते हैं। राजा सिंहासन पर बैठते हैं।)
राजा : क्यों मंत्रीजी! क्या समाचार हैं?
मंत्री : महाराज! इससमय तो जैनधर्म की अष्टान्हिका के दिन चल रहे हैं, इसलिए समूचे राज्य में जैनधर्म की बहुत आराधना, प्रभावना हो रही है।
राजा : हाँ, जिनकुमार प्रतिदिन जिनेन्द्र भगवान के अभिषेक का गन्धोदक लाता है और मैं उसे मस्तक पर चढ़ाता हूँ। अब आज तो अंतिम दिन है। राजकुमार गन्धोदक लेकर अभी आ ही रहे होंगे।
छड़ीदार : जैनधर्म के परमभक्त, जिनमती महारानी के पुत्र जिनकुमार पधार रहे हैं। ........