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धर्म की कहानियाँ भाग - ४ /७६
लवांकुश और मदनांकुश (संक्षिप्त नाम लव और कुश ) – ये दोनों राम-सीता के पुत्र थे.... दोनों चरम शरीरी थे.... दोनों एक साथ में जन्मे थे.... दोनों ने एक साथ ही दीक्षा भी ली थी.... और दोनों ने मोक्ष भी यहीं से पाया था। एक बार युद्ध में राम-लक्ष्मण को भी उन्होंने चिंतित कर दिया था.... दोनों को चैतन्य का भान था और चैतन्य के परम आनन्द का मार्ग अन्तर में देखा था.... अन्तर में देखे मार्ग पर चलकर वे यहीं से सिद्ध परमात्मा हुये।
सुबह से लव - कुश को याद करते-करते यहाँ आये हैं....इस पावागढ़ सिद्धक्षेत्र पर जीवन में पहली बार आये हैं.... यह पावागढ़ पवित्र सिद्धक्षेत्र है....रास्ते में दूर-दूर से इसका दर्शन करके, लव-कुश को याद करते-करते यहाँ आये हैं । उन्होंने अन्तर में चिदानन्द स्वरूप शान्ति का मार्ग साधा था । यहाँ शास्त्र में भी मंगलस्वरूप ऐसे चिदानन्द स्वरूप परमात्मा को नमस्कार करने की बात आई है ।
चिदानन्दैक सद्भावं परमात्मानमव्ययम् । प्रणमामि सदा शान्तं शान्तये सर्वकर्मणाम् ॥
- पद्मनन्दि पंचविशतिका, एकत्व अधिकार “ज्ञान और आनन्द रूप जिसका अस्तित्व है, ऐसा अविनाशी परम आत्मस्वभाव, उसे मैं प्रणाम करता हूँ, अर्थात् उसका आदर करके उसकी तरफ झुकता हूँ; क्योंकि सदा शान्त ऐसा आत्म-स्वभाव सर्व कर्मों की शान्ति का कारण है । अतः सर्व कर्मों को शान्त करने के लिए मैं अपने परम शान्तस्वरूप आत्मा को प्रणाम करता हूँ ।"
देखो, इस प्रकार अपने आत्मस्वरूप को जानकर, उसका आदर करके, उसकी तरफ झुकना - प्रणाम करना ही अपूर्व मंगल है, वही मोक्ष में ले जानेवाली अपूर्व यात्रा है।