________________
जैनधर्म की कहानियाँ भाग-४/७५
धन्य मुनिश्वर लव-कुश जिनने छोड़ा सब घर बार । कि जिनने समझा जगत असार । आतमहित में छोड़ा सब संसार । ....कि तुमने छोड़ा सब घर बार ।। बलदेव छोड़ा, वैभव छोड़ा, जाना जगत असार । ....कि तुमने जाना जगत असार ॥
- इस प्रकार वन-जंगल में विचरण करते हुए वे लव-कुश मुनिवर इस पावागढ़ क्षेत्र में पधारे.... थे।
“देखो, लव-कुश मुनिवर इस पावागढ़ क्षेत्र में पधारे....और इस पर्वत पर ध्यान किया.... ध्यान करते-करते चैतन्य रस में इतने लीन हो गये कि क्षपकश्रेणी मांड कर इसी पावागढ़ पर्वत पर चैतन्य का ध्यान करते-करते उन दोनों मुनिवरों ने केवलज्ञान पाया....कृतकृत्य परमात्मा बने। - ऐसे केवलज्ञान प्राप्त अरहन्त परमात्माओं को हमारा नमस्कार !
केवलज्ञान होने के बाद अल्पकाल में यहीं से वे मोक्ष को भी प्राप्त हुए.... उनका यह सिद्धिधाम तीर्थ है....कल इसकी यात्रा (वन्दना) करना है। अभी तो दक्षिण में बाहुबली भगवान (गोम्मटेश्वर) की यात्रा करने जाना है.... उसमें बीच में अनेकों तीर्थ आवेंगे, यह तो अभी पहला पड़ाव है। जब प्रथम पड़ाव ऐसा है, तो पूरी यात्रा कैसी यादगार होगी। अब लव-कुश की कथा आगे.... चलती है।
महा मनोहर रूपवान राजकुमारों ने वैराग्य धारणकर मुनिदीक्षा ग्रहण की । अरे ! निर्मल चैतन्य स्वभावरूप पवित्रधाम, उसमें जाकर....अन्तर की गहराई में उतरकर, बाह्य से भी एकान्त और अन्तरंग में भी शान्त एकान्त धाम में उतरकर उन्होंने चैतन्य की परमात्मदशा को इसी पावागढ़ क्षेत्र में साधा है। उनके बाद लाटदेश के राजा और अन्य ५,००,००,००० (पाँच करोड़) मुनिराजों ने यहीं से अपूर्व सिद्धपद पाया है। इसलिए यह क्षेत्र (स्थान) भी पवित्रधाम सिद्धक्षेत्र कहलाता है।