________________
जैनधर्म की कहानियाँ भाग-४/५४
66
" आज ही अर्द्धरात्रि व्यतीत होने के पश्चात् इसका जन्म हुआ
है" • वसंतमाला ने कहा ।
-
तब लग्न स्थापित कर एवं बालक के शुभलक्षणों को पहिचानकर ज्योतिषी ने कहा – “यह बालक तो तद्भव मोक्षगामी है । यह इसका अंतिम जन्म है अर्थात् अब दूसरा जन्म यह धारण नहीं करेगा। इसकी जन्म तिथि फाल्गुन कृष्णा अष्टमी तथा नक्षत्र श्रावण है और सूर्यचन्द्रादि समस्त गृह उत्तम स्थानों में सुस्थित हैं। बलवान हैं, ब्रह्मयोग है तथा शुभ मुहूर्त है; अतः निश्चित ही यह बालक अद्भुत राज्य प्राप्त करेगा, ही मुक्तिप्रदाता योगीन्द्रपद भी यह प्राप्त करेगा - इस प्रकार राजेन्द्र एवं योगीन्द्र दोनों पद प्राप्त कर अविनाशी सुख को प्राप्त करेगा । "
साथ
ज्योतिषी की बात सुनकर सबको अत्यन्त हर्ष हुआ ।
कुछ देर पश्चात् राजा प्रतिसूर्य ने अंजना से कहा - " हे पुत्री ! चलो अब हम सब अपने राज्य हनुमत द्वीप के लिये प्रस्थान करते हैं । वहाँ पहुँच कर इस पुत्र के जन्मोत्सव का विशाल आयोजन करना है।"
अंजना ने राजन् के कथन को स्वीकार कर सर्वप्रथम गुफा में विराजमान भगवान जिनेन्द्र की भावपूर्ण वन्दना की, पश्चात् पुत्र को गोद में लिया, तत्पश्चात् गुफा के अधिपति गंधर्वदेव से क्षमायाचना कर प्रतिसूर्य के परिवार के साथ गुफा द्वार से बाहर निकल आयी और विमान के समीप पहुँचकर खड़ी हो गयी, उसे जाते देखकर मानो सम्पूर्ण वन ही उदास हो गया, वन के पशु हिरणादि भी भीगी पलकों से विदा करते हुये टुकुर-टुकुर उसे निहारने लगे....गुफा, वन एवं पशुओं पर एक बार स्नेहभरी दृष्टि डालकर सखी सहित अंजना विमान में बैठ गई ।
विमान आकाशमार्ग से जा रहा है। अंजना सुन्दरी की गोद में बालक खेल रहा है, सभी विनोद कर रहे हैं कि तभी अचानक.... कुतूहल से हँसते-हँसते वह बालक माता की गोद से उछलकर नीचे पर्वत पर जा