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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-४/५३
राजा अत्यन्त स्नेहपूर्वक कहने लगा – “हे भव्यात्मा ! मैं हनुमत द्वीप का राजा प्रतिसूर्य हूँ और यह अंजना मेरी भानजी (बहिन की पुत्री) है। बहुत दिनों पश्चात् मैंने इसे देखा है, अत: पहिचान न सका" .
- ऐसा कहकर राजा प्रतिसूर्य अंजना के बाल्यावस्था का सम्पूर्ण वृत्तान्त गद्गद्वाणी से सुनाते हुये अश्रुपात करने लगे, अंजना भी उन्हें अपना मामा समझकर रुदन करने लगी- ऐसा लगता था, मानो आँसुओं के बहाने उसका सम्पूर्ण दुख ही बह रहा हो । यह लौकिक रीति है कि दुख प्रसंग में अपने हितैषी को देखते ही अनायास रोना आ जाता है - यही स्थिति उस समय उस गुफा में हो रही थी।
अंजना रुदन कर रही थी तो मामा-मामी एवं वसंतमाला के नयन भी अश्रुओं की धारा बहा रहे थे। उन चारों के रुदन से गुफा इस तरह गूंज रही थी मानो पर्वत एवं झरने भी रुदन कर रहे हों। रुदन की ध्वनि से सारा वन गूंज उठा था - ऐसा लगता था मानो सारा वन रुदन कर रहा हो और तो और वनवासी हिरणादि पशु भी उनके रुदन में शामिल हो गये थे।
. कुछ देर पश्चात् राजा प्रतिसूर्य शान्त हुये और उन्होंने अंजना को भी शान्त किया, उस समय वन भी शान्त हो गया मानो वह भी उनकी वार्ता सुनने को उत्साहित हो।
सर्वप्रथम तो अंजना प्रतिसूर्य की रानी अर्थात् अपनी मामी के साथ बातचीत करने लगी। महापुरुषों की यही विशेषता है कि वे दुख में भी अपने कर्तव्य से चलित नहीं होते।
तत्पश्चात् अंजना अपने मामा से कहने लगी- "हे पूज्य ! आप इस पुत्र का सम्पूर्ण वृत्तान्त ज्योतिषियों से पूछे।",
तब अपने साथ समागत ज्योतिषी से राजा ने वृत्तान्त जानने की इच्छा जाहिर की तो उसके उत्तर में ज्योतिषी कहने लगा - "इस बालक का जन्म समय क्या है - यह बताओ ?"