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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-४/५०
हनुमान का जन्म -
इसी प्रकार कितने ही दिन व्यतीत हो गये। अंजना के प्रसूति का समय निकट था, अत: वह अपनी सखी से कहने लगी – “हे सखी ! मैं कुछ व्याकुलता अनुभव कर रही हूँ।"
उसकी बात सुनकर वसंतमाला ने कहा – “हे देवी ! तुम्हारे प्रसूति का समय निकट है, अत: तुम चिन्ताओं का परित्याग कर आनंदित होओ। - ऐसा कहकर उसने अंजना के लिये कोमल शैय्या का निर्माण कर दिया।
जैसे पूर्व दिशा सूर्य को प्रगट करती है, उसी तरह अंजना ने सूर्यसम तेजस्वी हनुमान को जन्म दिया, उसका जन्म होते ही गुफा में व्याप्त अंधकार विलय हो गया और वहाँ प्रकाश का साम्राज्य हो गया। ऐसा लगता था मानो वह गुफा ही सुवर्ण-निर्मित हो।
अपने पुत्र को छाती से लगाकर दीनतापूर्ण स्वर में अंजना कहने लगी – “हे पुत्र ! इस गहन वन में तू उत्पन्न हुआ है, अत: मैं तेरा जन्मोत्सव किस प्रकार मनाऊँ ? यदि तेरा जन्म तेरे दादा या नाना के यहाँ होता तो निश्चित ही उत्साहपूर्ण तेरा जन्मोत्सव मनाया जाता । अहो ! तेरे मुखरूपी चन्द्र को देखकर कौन आनंदित न होता ? किन्तु मैं भाग्यहीन, सर्ववस्तु विहीन हूँ, अत: जन्मोत्सव का आयोजन करने में असमर्थ हूँ। हे पुत्र ! अभी तो मैं तुझे यही आशीर्वाद देती हूँ कि तू दीर्घायु हो, कारण कि जीवों को अन्य वस्तुओं की प्राप्ति की अपेक्षा दीर्घायु होना दुर्लभ है।
हे पुत्र ! यदि तू है तो मेरे पास सब कुछ है। इस महान गहन वन में भी मैं जीवित हूँ – यह भी तेरा ही पुण्य प्रताप है।" ।
अंजना के इन वचनों को सुनकर वसंतमाला कहने लगी – “हे देवी ! तुम प्रसन्न होओ। तुम कल्याणमयी हो, तभी तो ऐसे महान पुत्ररत्न की प्राप्ति तुम्हें हुई है। तेरा पुत्र सुन्दर लक्षणों से सुशोभित है, यह महाऋद्धि का धारक होगा।