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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-२/७३ हनुमान को परमात्मा के दर्शन
U.REIN
एक बार श्री अनंतवीर्य मुनिराज को केवलज्ञान हुआ। देवों और विद्याधरों के समूह आकाश में मंगल बाजे बजाते हुए केवलज्ञान का महान उत्सव मनाने गये। हनुमान भी आनंद से उस उत्सव में गये और भगवान के दर्शन किये। अहा ! दिव्य धर्मसभा के बीच निरालम्बी विराजमान अनंत चतुष्टयवंत अरहंत परमात्मा को देखकर हनुमान बहुत आश्चर्य करके प्रसन्न हुए। उन्होंने इस जीवन में पहली बार वीतराग देव को साक्षात् देखा था। जैसे सम्यग्दर्शन के समय पहली बार आत्मदर्शन होने पर भव्य जीव के आत्म-प्रदेश अपूर्व परम आनंद से खिल उठते हैं, वैसे ही हनुमान का हृदय भी प्रभु को देखकर आनंद से खिल उठा।
__ अहा ! प्रभु की मुद्रा पर कैसी परम शांति और वीतरागता झलक रही है, उसे देख-देखकर हनुमान के रोम-रोम में हर्ष समा गया, वे प्रभु की सर्वज्ञता में झरते हुए अतीन्द्रिय आनंद-रस को श्रद्धा के प्याले में भरभर कर पीने लगे। परम भक्ति से उनकी हृदय वीणा झंकार उठी --
अत्यन्त आत्मोत्पन्न विषयातीत अनूप अनंत का। विच्छेदहीन है सुख अहो! शुद्धोपयोग प्रसिद्ध का॥