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योगबिंदु
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अर्थ : और यह योग जन्मबीज के लिये अग्नि है, जरा के लिये जरा-व्याधि है अर्थात् जरा को नष्ट करने वाला है । सर्वदुःखों के लिये राजयक्ष्मा - क्षयरोग है और मृत्यु की भी मृत्यु है ॥ ३८ ॥
विवेचन : जन्मबीज-संसार के जो मुख्य कारण मिध्यात्व, अविरति, कषाय और अशुभ योग हैं वे जन्मबीज कहलाते है, क्योंकि इन अशुभ योगों से ही जीव संसार को बढ़ाने वाले आठ कर्मों को समय-समय पर बांधता रहता है और संसार की विविध योनियों में भटकता है । इस जन्मबीज को जला कर राख कर देने के लिये योग अग्नि का कार्य करता है, क्योंकि योग से मिथ्यात्व, अविरति, कषाय तथा अशुभयोगों का संवर करके तप, जप, सुगुरु, सुधर्म, सुदेव की पूजाभक्ति करते-करते अप्रमत्त चारित्र योग से योगी जन्मबीज को जला देता है । वृद्धावस्था के लिये तो यह योग जराव्याधि है । कोई रोग किसी व्यक्ति को लगा हो तो, वह उसे नष्ट कर देता है । इसी प्रकार बद्ध अवस्था को नाश करने के लिये यह योग जरा - व्याधि है । योग से योगी वृद्धत्व का नाश करता है | योग से वृद्धावस्था नहीं आती, मनुष्य जवान जैसा रहता । सभी दुःखों लिये यह योग क्षयरोग है । क्षयरोग रोगी को नष्ट कर के ही छोड़ता है, इसी प्रकार योग सभी दुःखों को नष्ट करने वाला है। योगी सर्वदुःखों से मुक्त हो जाता है। योग मृत्यु की भी मृत्यु है । श्रीयोगीराज आनंदघनजी महाराज ने गाया भी है :- "मृत्यु मरी गयो रे लोल" योगी की मृत्यु भी मर जाती है अर्थात् वह अजर और अमर हो जाता है । " या कारण मिथ्यात्व दियो तज, क्यूं कर देह धरेगें; अब हम अमर भये, न मरेगे" ॥३८॥
कुण्ठीभवन्ति तीक्ष्णानि मन्मथास्त्राणि सर्वथा । योगवर्मावृत्ते चित्ते तपश्छिद्रकराण्यपि ॥३९॥
अर्थ : योग रूपी कवच धारण करने वाले चित्त के उपर तप भी छिद्र करने वाले कामदेव के अतितीक्ष्ण शस्त्र भी सर्वथा कुण्ठित हो जाते हैं ||३९||
विवेचन : योगशास्त्रों के अभ्यास से जिनका मन सांसारिक पौगलिक सुखों से निर्लिप्त है, जो अप्रमत्त दशा में रहकर, भावचारित्र योग में निमग्न रहते हैं, ऐसे योगियों पर कामदेव के तीक्ष्ण शस्त्रों का भी कोई असर नहीं होता । जैसे सिंहगुफावासी मुनि कामदेव के शस्त्रों से चलित हो गये, किन्तु स्थूलभद्रमुनि जैसे योगीन्द्र के ऊपर कामदेव का कोई प्रभाव नहीं पड़ा, क्योंकि उन्होंने अप्रमत्तयोग रूप मजबूत बख्तर - कवच धारण किया हुआ था । " तप में भी छिद्र करने वाले" यह कामदेव के शस्त्र का विशेषण कामदेव की बलवत्ता को प्रकट करता है। वर्षों तक जिन्होंने घोर तपश्चर्या की है, ऐसे संभूतिमुनि, विश्वामित्र, पाराशर आदि वायु, पत्र और जल पीकर ही जीवन यापन करने वाले घोर तपस्वियों को भी कामदेव के शस्त्रों ने उनको उनके मार्ग से चलित कर दिया है। संसार के बड़े-बड़े ऋषि, मुनि, सन्त, महात्मा, विद्वान इसके सामने नत मस्तक है फिर भी जो