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यह अपूर्व कृति इतने सुन्दर अनुवाद के साथ प्रकाशन हेतु अपनी ही इस संस्था को. जिसकी स्थापना उनकी ही गुरुमाता पूज्य श्री मृगावती महाराज सा. ने की थी, प्रकाशन हेतु भेंट करने के लिए, उनकी इस अहैतुकी कृपा के लिये हम उनके चरणों में शत शत नमन करते हैं और आशा करते हैं कि इसे पढ़कर साधक श्रमण-श्रावक मोक्ष मार्ग पर अग्रसर होंगे।
हम प्रो. जितेन्द्र भाई शाह के भी अत्यन्त आभारी हैं जिन्होंने न केवल ग्रन्थ का सम्पादन किया और उसकी विद्वत्तापूर्ण प्रस्तावना लिखी, अपितु जिन्होंने समर्थ होते हुए भी अपने संस्थान द्वारा इसे प्रकाशित न करके इसे बी. एल. इन्स्टीट्यूट को प्रकाशन हेतु देकर हमें उपकृत किया।
२१.१२.२०१७
गयाचरण त्रिपाठी
निदेशक भोगीलाल लहेरचन्द भारतीय विद्या संस्थान
दिल्ली