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योगबिंदु
कनकोपलवत् पयडी पुरुषतणी रे, जोड़ी अनादि स्वभाव; अन्य संजोगी जिहां लगे आत्मा रे संसारी कहेवाय । पद्मप्रभुजिन० ॥३॥
इसी कर्म-संयोग को अन्यमतावलम्बी वेदांती "माया", सांख्य "प्रकृति" और जैन "कर्म" कहते हैं जो कि मात्र शब्द भेद है ।
आत्मा से सर्वथा भिन्न पौद्गलिक कर्मों की वर्गणाओं के संयोग से आत्मा संसारी अर्थात् भवभ्रमण करने वाली बन जाती है और जब आत्मा पौद्गलिक कर्मों से सर्वथा मुक्त हो जाती है तब वह वीतरागदशा को यानी रागद्वेषों के संस्कारों से सर्वथा मुक्त बन जाती है। जब शरीरधारी ऐसी वह आत्मा देहरहित हो जाती है तब उसे मूल कहा जाता है । आत्मा को होने वाला यह कर्मपुद्गल संयोग और उस कर्मसंयोग का सर्वथा वियोग ये दोनों स्थितियां अर्थात बन्ध और मोक्ष ये दोनों आत्मा के स्वभावभूत ही हैं । अनादिकाल से आत्मा बंधन में पड़ी है, आत्मा अपने परम पुरुषार्थ द्वारा जब बंधन से मुक्त होकर, सर्वथा स्वाधीन, स्वतन्त्र, अबद्ध हो जाती है अपना स्वभाव अभिव्यक्त कर पाती है यानी अपने स्वभाव में स्थित हो जाती है । तब वह आत्मा मुक्त कहलाती है ॥६॥
अन्यतोऽनुग्रहोऽप्यत्र तत्स्वाभाव्यनिबन्धनः ।
अतोऽन्यथा त्वदः सर्वं न मुख्यमुपपद्यते ॥७॥ अर्थ : अन्य देवों का अनुग्रह भी जीव के स्वभाव के कारण सफल होता है। किन्तु दूसरी तरह से विचारें तो अनुग्रह घटित ही नहीं सकता ॥७॥
विवेचन : अद्वैत, नैयायिक आदि अन्य मतानुसार शिव, राम, कृष्ण, विष्णु आदि अपनेअपने इष्टदेवों के अनुग्रह से ही जीव शुद्धज्ञान, क्रिया, चारित्र आदि प्राप्त करता है तथा संसार में चक्रवर्तीत्व, देवत्व, इन्द्रत्व के वैभव विलास आदि इहलौकिक-पारलौकिक भोगों की प्राप्ति भी उनके प्रसाद से ही होती है। अन्त में मोक्ष की प्राप्ति भी उनकी कृपा से ही उपलब्ध होती है अर्थात् शुद्धज्ञान की प्राप्ति और उस चारित्र द्वारा मुक्ति की प्राप्ति में भी ईश्वर का अनुग्रह ही मुख्य कारण है, प्रधान कारण है, आत्मा का निज पुरुषार्थ गौण कारण है। शिवानुयायी कहते हैं महेश्वर की कृपा-अनुग्रह से जीव शिव बन सकता है और जब तक शिव का अनुग्रह न होगा तब तक जीव संसार में भटकता रहता है । अतः जीव को मुक्त होने में शिव का अनुग्रह ही प्रधान कारण है, आत्मा का पुरुषार्थ प्रधान कारण नहीं । इसका प्रत्युत्तर ग्रंथकार ने 'अनुग्रहोऽपितत्स्वाभाव्यनिबन्धनः' इस श्लोक के प्रथमपाद के द्वितीय अंश से सूचित किया है । शिव अनुग्रह वस्तु के स्वभाव को कभी बदल नहीं सकता अर्थात् पदार्थ मात्र अपने स्वभावानुसार वर्तन करते हैं । अग्नि का उष्ण स्वभाव है तो क्या शिव भगवान अग्नि के उष्णस्वभाव को बदलकर, शीतल स्वभाव कर सकते हैं? क्या उष्णतम