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कर्ता : पूज्य श्री वीरविजयजी महाराज 2
पद्मप्रभ प्राणसे प्यारा, छोडावो कर्म की धारा;
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कर्म फंद तोडवा दोरी, प्रभुजीसे अर्ज हे मोरी.... लघुवय एक थें जीया, मुक्तिमें वास तुम कीया; नजानी पीड तें मोरी, प्रभु अब खींच ले दोरी... २ विषय सुख मानी मों मनमें, गयो सब काल गफलतमें; नरक दुःख वेदना भारी, निकलवा ना रही बारी...३ परवश दीनता कीनी, पापकी पोट शिर लीनी;
नजानी भक्ति तुम केरी, रह्यो निशदिन दुःख घेरी...४ इस विध विनति मोरी, करूं में दोय कर जोडी; आतम आनंद मुज दीजो; वीर नुं काज सब कीजो....
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