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कर्ता : श्री पूज्य मोहनविजयजी महाराज समकितदाता समकित आपो, मन मांगे थई मीठं छति वस्तु देतां श्युं शोचो, मीठु जे सहुए दीर्छ प्यारा प्राणथकी छो राज ! संभव-जिनजी ! मुजने, ईम मत जाणो जे आपे लहीए, ते लाधुं शुं लेवू पण परमारथ प्रीछी आपे तेह ज कहीयें देवू-प्यारा0...(१) अर्थी हुँ तुं अर्थ-समर्पक, ईम मत करज्यो हांसुं प्रगट हतुं तुजने पण पहिलां, ए हांसानुं पासुं, - प्यारा०...(२) परम पुरुष तुमे प्रथम भजीए, पाम्या ईम प्रभुताई तेणे रुपे तुमने ए भजीयें, तिणे तुम हाथ वडाई - प्यारा० ...(३) तुमे स्वामी हुँ सेवाकामी, मुजरे स्वामी निवाजे पर नहि तो हठ मांडी मांगतां किणविध सेवक लाजे-प्यारा०...(४) जोते जोति मिळे मत प्रीछो कुण लहसे ? कुण भजशे ? साची भक्ति ते हंसतणी परे, खीर नीर नय करशे - प्यारा०...(५) ओळग कीधी जे लेखे आवी, चरण-भेट प्रभु दीधी रुप-विबुधनो मोहन पभणे, रसना पावन कीधी-प्यारा०...(६)
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