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कर्ता : पूज्य श्री यशोविजयजी महाराज -4 थासुं प्रेम बन्यो छे राज, निरवहेश्यो तो लेखे में रागी प्रभु । थे छो निरागी अणजुगते होए हांसी एकपखो जे नेह निरवहवो, ते मांही कीसी शाबाशी ? थांसुं०(१) नि-रागी सेवे कांई होवे, ईम मनमें नवि आणुं फळे अ-चेतन पण जिम सुरमणि, तिम तुम भगति प्रमाणु-थांसुं०(२) चंदन शीतलता उपजावे, अगनि ते शीत मिटावे सेवकनां तिम दुःख गमावे, प्रभु गुण-प्रेम स्वभावे-थांसुं०(३) व्यसन उदय जलधी अनुहरे, शशिने तेज संबंधे अणुसंबंधे कुमुद अणुहरे, शुद्ध-स्वभाव प्रबंधे-थांसुं०(४) देव अनेरा तुमथी छोटा थें जगमां अधिकेरा जश कहे धर्मजिणेसर ! थासुं, दिल मान्या है मेरा-थांसुं०(७)
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