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सोहामणारे । तोहे न राचे नवि रुसेरे, नवि अविरतिनो पक्ष, सुपास सोहामणा || ३ || हास रति अरति नहि रे नहीं भयशोक दुगंछ, सुपास सोहामणा । नहि कंदर्प कदर्थनारे, नहि अंतराय नो संच, सुपास सोहमणा ||४|| मोह मिथ्यात निद्रा गई रे, नाठा दोष अदार सुनास सोहामणा । चोत्रीश अतिशय राजतोरे, मुलातिशयचार, सुपास सोहामणा ॥ ५॥ पांत्रीश वाणी गुणे करीरे, देतो भवि उपदेश सुपास सोहमणा । इम तुज विने ताहरेरे, भेदनो नहि लवलेश सुपास सोहामणा ||६|| रूपथी प्रभु गुण साँभरेरे, ध्यान रूपस्थ विचार सुवास सोहामणा । मानविजय वाचक वंदेरे, जिनप्रतिमां जयकार सुपास सोहामणा ||७||
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६ चन्द्र प्रभुजी का स्तवन
चन्द प्रभुजी नी चाकरी, मने लागे मीठी । जगमाँ जोड़ी जेहनी, कहाँ दीसे न दीठी ॥ प्रभुजी ने चरणे, माहरू मनडु ललचाणु । कोण छे बीजो एणे जगे, जोइने पलटाणु ॥ चन्द्र० ॥ १ ॥ कोड़ी करे पण अवरको, कोई काम न आवे । सुरतरू फूले मोहियो, कोण क सुहावे || चन्द्र० ॥२॥ जिम जिम निरखु नयनडे, तिम हैयुं उल्लेसे । एक घड़ी ने अंतरे, मुज मनडु तर से || चन्द्र० ॥३॥