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[४२] लब्धि निधान गुरु गोतम पाम्या, केवल ज्ञान प्रभाते जी । सकल लोक हरख्या सुख संपत, विलसे सूत्र सिद्धांते जी ॥३॥ विष्णुकुमर सानिधि घर घर, भट्टारक जोहार जी । वीर निर्वाण उपवासी भाई, बीजे करे आहार जी ॥ वाचक श्रुतसागर संतिसागर, वीर चरित्र एम भाखे जी । जय कल्याण करे सहु संघनी, सिद्धायिका परभावे जी ॥४॥
ACASA १ आदिनाथजी का स्तवन ऋषभ जिणंद ने वंदना नित करीये हो भविकजन सुखकार । नयरी अयोध्या नाथने जस लांछन हो वर वृषनुसार ॥ऋषभ०॥१॥ मरूदेवी नंदन दीपता नाभि भूपना हो कुलमांही आधार । कंचन कांति शरीरनी निज तेजे हो दिन मणि अनुकार ऋषभ०॥२॥ इन्द्र चन्द्र दिनेंद्रादि देव पूजना होजे उत्तम नाथ । गोमुख जक्ष चकेसरी शासन देवथी हो जेह पुजितनाथ ॥ऋषभ०॥३॥ जुगला धर्म निवारीयो चार सहस्त्रथी हो व्रत लीधु छ सार । चउरासी सहस साधु थी जस सेवित हो पय कमल उदार ॥ऋषभ०॥४॥ आनन्ददाता जिनवरु जे नाथजी हो दान दया भंडार । सौभाग्य पदने आपता जेणे लीधु हो मुक्ति विमल सार ॥ऋषभ०॥५॥