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१९ श्री अजितनाथ का चैत्यवन्दन अजित नाथ अवतार, सार संसारे जानु । जेणे जीत्या मद आठ, इस्यो अरिहंत वखाणु ॥१॥ राज रिद्धि परिवार छोडी, जेणे दीक्षा लीधी । टाली कर्म कषाय, शिव नारी वस कीधी ॥२॥ अंनत सुखमां झीलतो, पूजी कर्म आठे खपो । कवि रिषभ इम उच्चरे, अजित नाथ नित्ये जपो ॥३॥
२० श्री संभवनाथ का चैत्यवन्दन संभव जिन सुकुमाल, शियल संयमधारी। वाणी गंग विशाल, सुने नरपति ने नारी ॥१॥ अनंत ज्ञान जस बुद्धि, बंध कर्मना कापे । समयों सुख निवास, मुक्ति गढ हेला आपे ॥२॥ त्रीजो जिन त्रिभुवन बडो, भक्ति नवि चूको कदा। कवि ऋषभ इम उच्चरे, संभव जिन सेवो सदा ॥३॥ २१ श्री अभिनंदननाथ का चैत्यवन्दन अभिनंदन जिनदेव, सेव जस सुरपति सारे । संवर रायनो पुत्र, सकल दुःख सोय निवारे ॥१॥ तुबंधव तुतात, पाप तुज जाये नाठा । द्रारिद्र दुःख दौर्भाग्य, सोय पण जाये नाठा ॥२॥ गुण अनंत ताहरा प्रभु, त्रिभुवन नहीं को तुज समो । कवि रिषभ इणी परे उच्चरे, अभिनंदन जिनवर नमो॥३॥