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[१४] एकादश से चउगुणो, तेहनो परिवार । वैद अर्थ अवलो करे, मन अभिमान अपार ॥३॥ जीवादिक संशय हरीये, एकादश गणधार । वीरे थाप्या वंदीये, जिन शासन जयकार ॥४॥ मल्ली जन्म अर मल्ली पास, वर चरण विलासी । रिषभ अजित सुमति नमी, मल्लि घन घाती विनाशी ॥१॥ पद्म प्रभ शिव वास पास, भव भवनां तोडी। एकादशी दिन आपनी, ऋद्धि सघली जोडी ॥६॥ दशक्षेत्रे त्रिहुं कालना, त्रण से कल्याण । वर्ष अग्यार एकादशी, आराधो वरनाण ॥७॥ अगीयार अंग लखावीये, एकादश पाठां । पुजनी ठवणी वींटणा, मशी कागल काठां ॥८॥ अगीयार अव्रत छंडीये, वहो पडिमा अगीयार । क्षमा विजय जिन शासने, सफल करो अवतार ॥॥
१८ श्री ऋषभदेव का चैत्यवन्दन आदि देव अरिहंत, धनुष पांचसो काया । क्रोध मान नहीं लोभ काम, नहीं मृषा न माया ॥१॥ नहीं राग नहीं द्वोष, नाम निरंजन ताहरु । दीढुवदन विशाल, पाप गयु सवि माहीं ॥२॥ नामे हुँ निर्मल थयो, जपूंजाप जिनवर तणो । कवि रिषभ इणी परे उच्चरे, आदिदेव महिमा घणो ॥३॥