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[१६] २२ श्री सुमतिनाथ का चैत्यवन्दन सुमतिनाथ सुख वास, दास हुं भव भव हारो। कर विनती एक, आवागमन निवारो ॥१॥ सेवकनी करो सार, पोर पहेलां उतारो । क्रोध मान मद लोभ, सोय उपजतां वारो ॥२॥ देव निरंजन नाम तुह, तुझ नामे निश्चय तर्यो । कवि रिषभ इणी परे उच्चरे, सुमतिनाथ पूजा करो॥३।। २३ श्री पद्मप्रभु स्वामी का चैत्यवन्दन पद्मप्रभ छट्ठा भया, वर्णे प्रभु राता। धर राय कौसंबी धणी, सुसीमा जस माता ॥१॥ कमल लंछन अढीसो धनुष, शिव सम्पति दाता । त्रीश लाख पूरव आयु, त्रिभुवन नो त्राता ॥२॥ चोत्रीश अतिशय विराजता ए, सेवे सुरनर क्रोड । विनय विजय उपाध्यायनो, रुप नमे करजोड ॥३॥ २४ श्री सुपार्श्वनाथजी का चैत्यवन्दन जग तारण जिन सातमा, प्रतिष्ठित राय नंद । पृथ्वी मात उरे धर्यो, मुख पर्णिमा चन्द ॥१॥ बीस लाख पुरव आयु, बसो धनुष देह दीपे । स्वस्तिक लंछन श्री सुपार्श्व, अरियण ने जीपे ॥२॥ जन्म स्थान वाराणसी ए, देह कनक ने वान । रुप विजय कहे साहिबा, यो शिवरमणी ठाम ॥३॥