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कालिका सूरि कारणे ए, पजुषण कीधा । भादवा सुदि चौथमां, निज कारज सिध्या ॥ ११ ॥ पंचमी करनी चौथमां, जिनवर वचन प्रमाणे । वीर थकी नव से अंशी, वरसे ते जाने || १२ | श्रीलक्ष्मीसागरसूरिश्वरु ए, प्रमोद सागर सुखकार । पर्व पजुषण पालतां, होवे जय जयकार ||१३|| १२ श्री पर्व पर्युषण का चैत्यवन्दन
कल्प तरुवर कल्पसूत्र, पूरे मन वांछित । कल्प धरे धुरथी सुनो, श्री महावीर चरित्र ॥ १ ॥ क्षत्रिय कुन्डे नरपति, सिद्धार्थ राय ।
राणी त्रिशला तणी कुखे, कंचन समकाय ॥२॥ पुष्पोत्तर वर थी चवीया ए, उपज्या पुण्य पवित्र । चतुरा चउदह सुपन लहे, जमन्या विनय विनीत ॥३॥
१३ वीसस्थानक तप ना काउस्सग्ग का चैत्यवन्दन
चौवीश पर पीस्तालीसनो, छत्रीश नो कहीये ।
दस पचवीश सतावीश नो, काउसग्ग मन धरीये ॥ १ ॥ पंच सडसठि दशवली, सित्तेर नव पण वीस । बारड बीस लोगस्स तनो, काउसग्ग घरो गुणीस ||२||
वीस सतर इगवन्न, द्वादशन पंच ।
इनी परे काउसग्ग जो करे, तो जाये भवसंग ॥३॥