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[११] अनुक्रमे काउसग्ग मनधरो, गुणी लेज्यो वीस । वीस स्थानक इम जानिये, संक्षेप थी लेस ॥४॥ भावधरी मनमां घणो ए, जो एक पद आराधे । जिम उत्तम पद पनने, नमी निज कारज साधे ॥५॥
१४ दूज का चैत्यवन्दन दुविध धर्म जेने उपदिश्यो, चौथा अभिनंदन । बीजे जन्मया जे प्रभु, भव दुःख निकंदन ॥१॥ दुविध ध्यान तुमे परिहरो, आदरो दोय ध्यान । एम प्रकाश्यो सुमति जिने, ते चविया बीज दिन ॥२॥ दोय बंधन राग द्वष, तेहने माने तजीये। मुझ पर शीतल जिन कहे, बीज दिन शिव भजीये । ३॥ जीवाजीव पदार्थ नु, करी नाण सुजाण । बीज दिने वासूपुज्य परे, लहो केवल नाण ॥४॥ निश्चय नय व्यवहार दोय, एकान्ते न ग्रहीये । अरजिन बीज दिने च्यवी, एम जन आगल कहीये ॥५॥ वर्तमान चौवीशीये, एम जिन कल्याण । बीज दिने केई पामीया, प्रभु नाण निर्वाण ॥६॥ एम अनन्त चोवीशीये, हुया बहु कल्याण । जिन उत्तम पद पाने, नमर्ता होये सुखखान ॥७॥