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११ श्री पर्व पर्युषण का चैत्यवन्दन
सकल पर्व शृंगार हार, पर्युषण कहीये । मंत्र मांहि नवकार मंत्र, महीमा जग लहीये ॥१॥ आठ दिवस अमार सार, अट्ठाई पालो । आरंभादिक पीर हरी, नरभव अजवालो ||२॥ चैत्य परिपाटी शुद्ध साधु, विधि वन्दन जावे । अट्टम तप संवच्छ, पडिकमनुं भावे ॥३॥ साधर्मिक जन खामणा ए, त्रिविधि सु कीजे । साधु मुख सिद्धांत क्रांत, वचनामृत रस पीजे ॥४॥ नव व्याख्याने कल्पसूत्र, विधि पूर्वक सुणीये । पूजा नव प्रभावना, निज पातिक हणीये ॥ ५॥ प्रथम वीर चारित्र बीज, पार्श्व चरित्र अंकूर 1 नेम चरित्र प्रबंध खंध, सुख सम्पति पूर ॥६॥ ऋषभ चरित्र पवित्र पत्र, शाखा समुदाय । स्थिवरावली बहु कुसुमपूर सरिखो कहवाये ॥७॥ समाचारी शुद्धता ए, वर गंध वखानो ।
शिव सुख प्राप्ती फल सही, सुर तरु सम जानो ||८|| चौद पूर्वधर श्रीभद्रबाहु, जेने कल्प उद्धरीयो । नवमा पूर्व थी युग प्रधान, आगम जल दरीयो ||९ ॥ सात वार श्री कल्पसूत्र, जे सुने भवि प्राणी । गौतम ने कहे वीर जिन, परणे शिवराणी ॥१० ॥