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॥ श्री सुपास० ॥६॥ विधि विरंची विश्वंभरु, हृषीकेश जगनाव ललना, अघहर अघमोचन धणी, मुकित परम पद साथ ललना ॥ श्री सुपास० ॥ ७॥ एम अनेक अभिधा घरे, अनुभव गम्य विचार ललना; जे जाणे तेहने करे, आनन्दधन अवतार-चलना ॥ श्री सुपात ॥८॥
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क्यूं न हो सुनाई स्वामी ऐसा गुन्हा क्या कीया मोरों की सुनाइ जावे मेरी बारी नहीं आवे तुम बिन कोन मेरा मुझे क्यूं भूला दीया ॥१॥ भकत जनों तार दिया तारने का काम कीया विन भक्ति वाला मोंपे पक्षपात क्यूं कीया ॥२॥ राय रंक एक जानो मेरा तेरा नहीं मानो तरन तारन ऐसा बिरुद धार क्यूं लीया ॥३॥ गुन्हा मेरा बक्ष दीजे मोंपे अति रहेम कीजे पक्काही भरोसा तेरा दोल में जमा लीया ॥ ४॥ तुही एक अन्तरजामी सुनो श्री सुपास स्वामी अबतो आशा पुरो मेरी कहेना सो तो कह दीया ॥ ५॥ शहेर अंबाले भेटी प्रभुजी का मुख देखी । मनुष्य जनम का लाहा लेना सो तो ले लीया ॥६॥ उन्निसो छासठ छबीला दिप माल दिन रंगीला कहे वीर विजव प्रभु भक्ति में जगा दिया।। ७ ।।