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भोगवी राज्य रमा जाया; पछी संजम लही केवल पाया हो अवि० ॥६॥ तीरथ वरतावी जग मांहे, जन निस्तार्या पकड़ी बांहे; जे रमण करे निज गुण माहे ॥ हो अवि० ॥७॥ अम वेला मोन करी स्वामी; किम बैठा छो अंतरजामी; जगतारक बिरुद लगे खामी ॥ हो अविल ॥८॥ निजपाद पद्म सेवा दीजे, निज समवड सेवक ने कीजे; कहे रूपविजय मुजरो लीजे ॥ ही अवि० ॥६॥
(७) श्री सुपाचे जिन स्तवन
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श्री सुपास जिन वदिये, सुख संपत्तिनो हेतु ललना; शांत सुधारस जलनिधि, भवसागर माहे सेतु ललना॥ श्री सुपास० ॥१॥ सात महाभय टालतो, सप्तम जिनपर देव-ललना; सावधान मनसा करी, धारो जिनपद सेव-ललना ॥श्री सुपास० ॥२॥ शिव शंकर जगदीश्वरु चिदानंद भगवान-ललना; जिन अरिहा तीर्थंकरु, ज्योतिस रुप असमान ललना ॥ श्री सुपास० ॥ ३ ॥ अलख निरंजन वच्छलु, सकल जंतु विश्राम-ललना; अभयदान दाता सदा, पुरण आतमराम-ललना ॥ श्री सुपास० ॥ ४ ॥ वीतराग मद कल्पना, रति अरति भय सोग-ललना, निद्रा तंद्रा दुरंदशा, रहित अबाधित योग-ललना ॥ श्री सुपास० ॥ ५॥ परम पुरुष परमातमा, परमेश्वर परधान-ललना; परम पदारथ परमेष्ठी, परमदेव परमाण-ललना