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ता सकिकन्दो पभणई, साहिम्म बच्छ लम्मि बहुलाओ आणा एवं तेणं, गिन्हई होउ कयत्था भो। (यह कह कर सभी कलशों के जलसे भगवान को स्नान करानी चाहिये)।
_ ढाल सोहम सुरपति वृषभ रूप करि न्हवण करें प्रभु अंगे। करिय विलेपन पुष्पमाल ठवि पर आभरण अभगे ।सोहम० ॥ तव सुरवर बहु जय जय रव करि निश्चै धरि आणन्द । मोक्ष मारग सारथ पति पाम्यों भांजस्य॒ हि भव वन्ध । सो। कोड़ बत्तीस सोवन्न उवारी वाजंतै वरनाद । सुरपति संघ अमर श्री प्रभु ने जननीने सुप्रसाद ।। आणी थापी एम पयंपे अम्ह निस्तरिया आज । पुत्र तुम्हारो धणिय हमारो तारण तरण जिहाज । सोहम० ३ ॥ मात जतन करि राखज्यो एहनें तुम सुम हम आधार । सुरपति भक्ति सहित नन्दीश्वर करे जिन भक्ति उदार ॥ सो० ४ ।। निय निय कप्प गया सहु निर्जर कहता प्रभु गुण सार । दीक्षा केवल ज्ञान कल्याणक इच्छा चित्त मझार ॥ सोहम० ५॥ खरतगच्छ जिण आणा रंगी राज सागर उवज्झाय । ज्ञान धर्म दीपचंद सुपाठक सुगुर तणे सुपसाय ॥ देवचन्द निज भक्तें गायो जन्म महोच्छ छन्द । बोध बीज अंकुरो उलस्यो संघ सकल आणंद ॥ सोहम० ६ ॥