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ढाल. एम पमणंत वण भुवन जोईसरा, देव वेमाणिया मति धम्मायरा । केवि कप्प-ट्टिया केवि मित्ताणुगा। केवि वर रमण वयणेण अइ उच्छगा।
वस्तु तत्थ अच्युय तत्थ अच्युय इन्द्र आदेश । कर जोडि सब देव गण लेई कलश आदेश पामिय । अद्भुत रूप सरूप जुयकवण एह पुच्छन्त समिय ?
इन्द्र कहे जग तारणो पारग अम्ह परमेस । दायक नायक धर्म निधि करिये तसु अभिषेक ॥
( इस समय जल की थोड़ी सी धारा देना) । तीर्थ कमलवर उदक भरनें पुष्कर सागर आवै-ए देशी ॥
ढाल पूर्ण कलश शुचि उदकनी धारा, जिनवर अंगे नाम । आतम निर्मल भाव करंता बघतें शुभ परिणमैं ॥ अच्युतादिक सुरपति मज्जन, लोकपाल लोकांत । सामानिक इन्द्राणी पमुहा, इम अभिषेक करत ॥पूर्भ कलश
गाथा - तब ईशाण सुरिंदो, सक्कं पमणेइ करि सुपसाउ तुम अंके महनाओ, खिणमितं अम्ह अप्पेह ।