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( १४ )
तसु
धाम ।
रे रे निसुणो सुरलोय देव, विषयानल तापित तनु समेव । शांति करण जलघर समान, मिथ्याविष चूरण गरूड़ समान । ते देव सकल तारण समत्थ, प्रगटयो तसु प्रणमी हुई सनत्थ । इम जम्पी, शक्रस्त्व करेवि, तब देव देवि हरखे सुणेवि । गावें तब रम्भा गीत गान, सुरलोक हुवो मंगल निधान । नर खेत्रें आरज वंश ठाम, जिनराज बधै सुर हर्ष पिता माता घरे उत्सव अलेख, जिन शासन मंगल अति सुरपति देवादिक हर्ष संग, संयम अरथी जनने शुभ वेला लगने तीर्थनाथ, जनभ्यां इन्द्रादिक हर्ष सुख पाभ्यां त्रिभुवन सर्व जीव, बधाई बधाई थई यह कह कर फूल और चावलों से बधाना और बाद में चैत्य वंदन करके और धुप देना चाहिये ।
विशेष ।
उमंग |
साथ ।
अतीव ।
॥ श्री शान्ति जिननो कलश कहसुं- ऐ देशी ।। त्रोटक
श्री तीर्थ पतिनो कलश मज्जन गाइये सुखकार, नरखेत मंडन गृह विहंडन भविक मन आधार । तिहां राब राणां हर्ष उच्छव थयो जग जयकार, दिसी कुमरि अवघि विशेष जाणी लह्यो हर्ष अपार । निय अमर अमरी संग कुमरी गावती गुण छन्द, जिन जननी पासें आवि पोंहती गहगहती आणंद । हे माय तें जिनराज जायो सुचि बघायो रम्म, अम जम्म निम्मल करण कारण करिस सुइय कम्म ।