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( १३ )
पूरण कलश पंडूर पदम सरोवर पूर। इग्यारमे रयणायर, देखें माताजी गुण सायर । बारमें भुवन विमान, तेरमें रतन निधान । अग्नि शिखा निरधूम, देखे माताजी अनुपम । हरखी रायने भासे, राजा अर्थ प्रकाशें। जगपति जिनवर सुखकर, होस्] पुत्र मनोहर । इन्द्रादिक जसु नमस्य, सकल मनोरथ फलस्य ।
वस्तु पुण्य उदय पुण्य उदय ऊपना जिणनाह, माता तब रयणी समैं देखि सुपन हरषंत जागिय । सुपन कहि निज कंतने सुपन अरथ सांमलो सोभागिय, त्रिभुवन तिलक महागुणी, हौस्य पुत्र निधान । इन्द्रादि जसु पाय नमी, करस्य सिद्ध विधान ।
॥ ढाल चन्द्रा उल्लालानी॥ सोहम पति आसन कंपियो, दई अवधे मन आणंदियो। मुझ आतम निरमल करण काज, भव जल तारण प्रगट्यो जिहाज । भव अटवि पारग सन्थवाह, केबल नाणाइअ गुण अगाह । शिव साधन गुण अंकुर जेह, कारण उलट्यो, आषाढ़ मेह । हर विकसै तब रोम राय, बलियादिक मां निजतनु न माय । सिंहासन थी ऊठो सुरीद, प्रणमन्तो जिण आनन्दकन्द । सग अड़पय पमुहा आवितत्थ, करि अञ्जलि प्रणमिय मत्थ सत्थ ! मुख भाखें ऐ खिग आज सार, तियलोय पहु दीठो उदार ।
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