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________________ [: १०० ] परमातम परमेसरु जिनराय, हारे जस फणिपति लंछन पाय, हारे काशी देश वाणारसी राय, हारे जयोए शुद्ध प्रेम दादा॥४॥ गणपर दश द्वादशांगीना धरनार, हारे सोल सहस मुनिवर थाय, . हारे अडतीस सहस साहुणी सार, हारे रुडो जिन परिवार दादा०॥५॥ नोलवरण नव हाथ सुन्दर काया,हारे एक वत वर्ष पाल्यु आय, हारे पाम्या परम महोदय ठाय, हारे सुख सादि अनंत दादा० ॥६॥ जिन उत्तम पद सेवना सुखकारी, हारे रूप कीरति कमला विस्तारी हारे मुनि भोमविजय जयकारी, हारे प्रभु परम कृपाल दादा० ७॥ (२४) श्री महावीर जिन स्तवन (१) सिद्धारथना रे नंदन विनवू, विनतडी अवधार; भव मंडपमां रे नाटक नाचियो, हवे मुज दान देवार ॥सिद्धा० ॥१॥ त्रण रतन मुज आपो तातजी, जेम नावे रे संताप; । दान दियंता रे प्रभु ! कोसर किसी ? आपो पदवी रे आप ॥२॥ . चरण अंगूठे रे मेरु कंपावीयो, मोड्यां सुरनां रे मान; अष्ट करमना रे झगड़ा जीतवा, दीघां वरसी रे दान ॥ सिद्धा० ३॥ शासन नायक शिव सुखदायक, त्रिशला कुखे रतन; सिद्धारथनो रे वंश दीपावीयो, प्रभुजी तमे धन्य धन्य ।सिद्धा०४॥ वाचक शेखर कीति विजय गुरु, पामी तास पसाय; धर्म तणे रसे - जिन चोवीसना, विनय विजय गुण गाय ॥ सिद्धा ० ५॥
SR No.032198
Book TitlePrachin Stavan Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivya Darshan Prakashan
PublisherDivya Darshan Prakashan
Publication Year
Total Pages166
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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