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[ ६६ ] अश्वसेनना लाडकवाया लग्यो तारो नेडलो भारा हृदय कमलना वासी हु ना छोड़ें छेडलो
पास प्रभु शंखेश्वरा मुज दरिसण वेगे दीजे रे तुज दरिपण मुज वालहुं जाणु अहनिश सेवा कीजे रे ॥१॥ रातदिवस सुतां जागतां मुज हैडे ध्यान तुमार रे जीभ जंपे तुम नामने तव उल्लसे मनड्ड मारु रे ॥२॥ दैव दीये जो पांखडी तो आQ तुम हजुर रें। मुज मन केरी वातडी कही दुःखडा कीजे दूर ॥३॥ तुप्रभु आतम माहरो तुप्राण जीवन मुज देव रे संकट चुरण तु सदा मुज महरे करो नित मेव रे ॥४॥ कमल सुरज जेम प्रीतडी जेम प्रीति बपैया मेह रे दुर थकी तिम राखजो मुज उपरे अधिक सनेह रे ॥५॥ सेवक तणीए विनती अवधारी सु नजर कीजे रे लब्धि विजय कवि प्रेमने प्रभु अविचल सुखडां दीजे रे ॥६॥
दादा पारसनाथ ने नित्य नमिये, हारे नित्य नमिये रे, नित्य नमिये हारे नभिये तो भव नवि खमिये, हारे चित्त आणीठाम दादा ॥१॥ वामा उर सर हंसलो जगदीवो, हारे जगतारक प्रभु चिरंजीवो, हारे अनु दर्शन अमृत पीवो, हारे दीठे सुख थाय दादा० ॥२॥ अश्वसेन कुल चंद्रमा जगनामी, हारे अलवेसर अंतरजामी, हारे त्रण भुवननी ठकुराई पामी, हारे कहे सुरपति सेव दादा ॥३॥