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( ८ ) पुस्तक की प्रस्तावना में डा० जैन ने ग्रन्थ और ग्रन्थकार के परिचय के साथ ही सम्बन्धित कथा की पूर्व परम्परा की ओर ध्यान आकृष्ट किया है। इस प्रसंग में संस्कृत, प्राकृत तथा पालि साहित्य से अनुरूप कथाओं का उल्लेख किया गया है। काव्य में प्रयुक्त छन्दों की सूची लक्षण उदाहरण के साथ दी गई है जो कि एक स्वतंत्र कोश ही हो गया है। प्रस्तावना का यह अंश विविध छन्दों के जिज्ञासुओं के लिए उपयोगी सिद्ध होगा। डा. जैन ने पुस्तक के साथ हिन्दी अनुवाद संलग्न कर इसे और भी अधिक उपादेय बना दिया है। हमें पूर्ण विश्वास है कि प्रस्तुत ग्रन्थ डा. जैन द्वारा सम्पादित मणयकुमार चरिउ, करकण्ड चरिउ, सावयधम्म दोहा, पाहुड दोहा और मयणपराजय चरिउ आदि ग्रन्थों की भांति ही अपभ्रंश साहित्य के पाठकों के लिए अत्यन्त ही उपादेय सिद्ध होगा। वैशाली ७-३-७०
नथमल टाटिया