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प्राकथन
डा० हीरालाल जैन द्वारा सम्पादित नयनंदी-विरचित सुदंसणचरिउ पाठकों के सम्मुख रखते हुए हमें अतीव हर्ष हो रहा है।
प्रस्तुत ग्रन्थ एक चरित काव्य है जिसका उद्देश्य धर्माचरण का सुफल दिखलाना है। पंचनमोकार मंत्र के जाप के फलस्वरूप सुभग नामक ग्वाला सुदंसण श्रेष्ठी के रूप में जन्म लेता है। इस भव में भी वह वासनाओं के प्रलोभन से विचलित नहीं होता है। फलतः देवता आकर उसकी रक्षा करते हैं। और वह राजा के द्वारा दिए गए मृत्यु-दण्ड से बच जाता है। अन्ततः अपने धर्माचरण से वह चार घातिया कर्मों को नष्ट कर केवल ज्ञान तथा सिद्धत्व प्राप्त करता है।
धर्माचरण का सुफल दिखलाने वाले अन्य चरित काव्यों की तरह इसमें भी आश्चर्य तत्त्व की बहुलता है। विद्याधर, यक्ष, देव आदि सहज रूप से प्रकट हो पात्रों की सहायता करते हैं। तंत्र-मंत्र में विश्वास, मुनियों की वाणी में श्रद्धा तथा स्वप्नफल और शकुनों में विश्वास भी इस ग्रन्थ के पात्रों में सामान्यतया पाये जाते हैं। एक सीमित उद्देश्य को लेकर चलने के कारण ऐसे काव्यों में कवि प्रायः जीवन के विविध पहलुओं को नहीं छू सकता और भावनाओं का अन्तर्द्वन्दू भी नहीं दिखला सकता है। इनमें प्राधान्य घटनाओं का रहता है और विचारतत्त्व क्षीण रहते हैं।
कथा में नायक और नायिका का प्रेम और फिर नायक के प्रति अन्य महिलाओं का प्रेम केन्द्रस्थानीय है। अतः प्रस्तुत काव्य में शृङ्गार रस बहुलता से मिलता है। वीर रस का भी अभाव नहीं है। लेकिन अन्त में सदाचार की स्थापना और वैराग्य की प्रवृत्ति होती है अतः रसों का पर्यवसान शान्त रस में होता है।
नयनंदी का यह चरित काव्य आलंकारिक काव्यशैली की परम्परा में है। जहां तहां वर्णनों में समासों की शृङ्खलाएं एवं अलंकारों के जटिल प्रयोग पाठकों को बाण और सुबन्धु की याद दिलाते हैं। अर्थालंकारों के साथ शब्दालंकारों का प्रयोग भी बहुलता से हुआ है। भाषा को अनुरणनात्मक बनाने के लिए शब्दों की और शब्दसमूहों की आवृत्ति के अनेक उदाहरण मिलते हैं। लोकोक्तियों के प्रयोग से भाषा में स्वाभाविकता और लालित्य आया है। ग्रन्थ का एक अत्यन्त ही आकर्षक तत्व छन्दों की विविधता है। इसमें सन्देह नहीं है कि अपने साहित्यिक गुणों से ग्रन्थ पाठकों का चित्ताकर्षण करेगा।